गुरुवार, 25 अक्तूबर 2018

अमृतसर में  रावण पुतला दहन के दौरान  हुए  रेल दुर्घटना में  सैकड़ों लोगों के मारे जाने पर  हरिवंशराय बच्चन की लिखी यह कविता मुझे आज के दौर में प्रासंगिक लगी।


ना दिवाली होती, और ना पठाखे बजते

ना ईद की अलामत, ना बकरे शहीद होते
तू भी इन्सान होता, मैं भी इन्सान होता,

…….काश कोई धर्म ना होता....

…….काश कोई मजहब ना होता....
ना अर्ध देते, ना स्नान होता

ना मुर्दे बहाए जाते, ना विसर्जन होता
जब भी प्यास लगती, नदीओं का पानी पीते

पेड़ों की छाव होती, नदीओं का गर्जन होता
ना भगवानों की लीला होती, ना अवतारों

का नाटक होता

ना देशों की सीमा होती , ना दिलों का

फाटक होता
ना कोई झुठा काजी होता, ना लफंगा साधु होता

ईन्सानीयत के दरबार मे, सबका भला होता
तू भी इन्सान होता, मैं भी इन्सान होता,

…….काश कोई धर्म ना होता.....

…….काश कोई मजहब ना होता....
कोई मस्जिद ना होती, कोई मंदिर ना होता

कोई दलित ना होता, कोई काफ़िर ना

होता
कोई बेबस ना होता, कोई बेघर ना होता

किसी के दर्द से कोई बेखबर ना होता
ना ही गीता होती , और ना कुरान होती,

ना ही अल्लाह होता, ना भगवान होता
तुझको जो जख्म होता, मेरा दिल तड़पता.

ना मैं हिन्दू होता, ना तू भी मुसलमान होता
तू भी इन्सान होता, मैं भी इन्सान होता।
*हरिवंशराय बच्चन*

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