रविवार, 26 अप्रैल 2020

कोरोना कविता

सदा चुपचाप चली इस कर्म पथ पर,
कभी किसी को जताया नहीं,
कभी किसी को कहा नहीं,आज अनायास ही लगा कुछ कहूं आपसे,
आज एक साथ को जो खो दिया मैंने,
दुख है, नहीं रोक पाए उसको,
आपको रोकने में जो लगा था वो।
सिमटी बैठी है साड़ी में वो आज अपना सब हार,
फिर खड़ी होगी कल, खाकी ने थामा है उसका हाथ,
फिर लौटेगीं यह नम आंखे, इस बलिदान की चमक के साथ,
मन विचलित है पर हौसला अडिग है,
फिर कस लिया है बेल्ट अपना,
फिर जमा ली है सर पर टोपी
 लो आखिर मैंने लिख ही दी, पीड़ा विश्व के मानव की
लो लिख दी कविता मैंने, धरती पर आए दानव की
लिख दिया लेखनी से मैंने, महामारी का काला परचम
मानव की कुछ भूलों से , कैसे निकला मानव का दम।

संस्कारो को भूल गए और पाश्चात्य को अपनाया
जो काम कभी करते थे हम, उनको हमने बिसराया
कन्द, मूल ,फल भूल गए हम, लेग पीस हमें भाया
फिर कोरोना के चक्कर में, हर कोई देखो पछताया।

यदि बढ़ानी है प्रतिरक्षा ,तो नित्य प्रति व्यायाम करो
हर घंटे साबुन से ,हाथो का स्नान जरूरी है
कोरोना से लड़ना है तो ,कर्फ्यू जाम जरूरी है।

और जरूरी है अपनाना पुरातन संस्कृति को
हाथ मिलाना छोड़ आज, नमस्ते वाली रीति को
यदि बचना इससे है तो ,एक अनूठी ढाल जरूरी है
जब भी छींको, खांसो तुम ,मुंह पर रूमाल जरूरी है।

कोरोना कविता

बन्द करो करोना का रोना
बनो सनातन कुछ ना होना
तन- मन- जीवन हिन्दू हो तो
सदा स्वस्थ कोई रोग ना होना
खाना में शाकाहार करो...
करना है तो करो नमस्ते
शेक हैंड मत करोना
खाना में शाकाहार करो
मांसाहार मत  करोना
मदिरा पान मत  करोना...

रोज करो तुलसी का सेवन ,
धूम्रपान मत  करोना
नीम गिलोय का घूंट भरो
मदिरा पान मत  करोना
फ़ास्ट फ़ूड मत करोना...
देशी भोजन रोज करो
फ़ास्ट फ़ूड मत करोना
हाथ साफ दस बार करो
लाश दफन मत करोना...
कहीं गंदगी मत करोना
अग्नि संस्कार करो शव का
लाश दफन मत करोना

कोरोना कविता

बन्द करो करोना का रोना
बनो सनातन कुछ ना होना
तन- मन- जीवन हिन्दू हो तो
सदा स्वस्थ कोई रोग ना होना
खाना में शाकाहार करो...
करना है तो करो नमस्ते
शेक हैंड मत करोना
खाना में शाकाहार करो
मांसाहार मत  करोना
मदिरा पान मत  करोना...

रोज करो तुलसी का सेवन ,
धूम्रपान मत  करोना
नीम गिलोय का घूंट भरो
मदिरा पान मत  करोना
फ़ास्ट फ़ूड मत करोना...
देशी भोजन रोज करो
फ़ास्ट फ़ूड मत करोना
हाथ साफ दस बार करो
लाश दफन मत करोना...
कहीं गंदगी मत करोना
अग्नि संस्कार करो शव का
लाश दफन मत करोना

कोरोना कविता


कितने खौफ़नाक मंज़र हैं यहां तबाही के

घुटने टूटे सुपरशक्ति की तानाशाही के
कितने खौफ़नाक मंज़र हैं यहां तबाही के.

फंसी हुई दुनिया कैसे
अपने ही पांसों में
एक वायरस टहल रहा
आदम की सांसों में
अवरोधक लग गए
पांव में आवाजाही के.
कितने खौफ़नाक मंज़र हैं यहां तबाही के.

सुनते हैं यमराज कहां
कब कोई भी बिनती
रोज यहां गिरती लाशों की
कौन करे गिनती
दिखते हैं ताबूत अनगिनत
यहां उगाही के
कितने खौफ़नाक मंज़र हैं यहां तबाही के.

कहां गया ईश्वर बहुव्यापी
जग का विषपायी
एक वायरस ने दुनिया को
किया धराशायी
कुछ दिन में तो लोग मिलेंगे
नहीं गवाही के.
कितने खौफ़नाक मंज़र हैं यहां तबाही के.

वल्गाएं थम गयीं
प्रगति की संध्या वेला है
यह दुनिया लगती जैसे
दो दिन का मेला है
कहां गए वे दिन
पहले-से सरितप्रवाही के.
कितने खौफ़नाक मंज़र हैं यहां तबाही के.

रेलें ठप, ठप हुई
हवाई सारी यात्राएं
घर में कैद सुनाएं
कैसे अपनी पीड़ाएं
तेल कान में डाल
सो रही नौकरशाही के.
कितने खौफ़नाक मंज़र हैं यहां तबाही के.

पहले सी अब दिखती नहीं वे रौनकें बाजार की

पहले सी अब दिखती नहीं हैं
रौनकें बाजार की.

हर ओर सन्नाटा यहां
हर रोज बढ़ते फासले
हर रोज मौतें बढ़ रहीं
हर ओर दुख के काफिले

कैसी महामारी चली
धुन थम गयी संसार की.

वे वक्त के मजदूर हैं
पर वक्त से मजबूर हैं
ताले लगे, रस्ते रुके
जाएं कहां वे दूर हैं

सुनता कहां मालिक भला
चीखें यहां लाचार की.

है पीठ पर गठरी लदी
औ कांध पर बच्चे लदे
जाना है मीलों दूर तक
पर प्राण फंदों में फँदे

है जान सांसत में पड़ी
खुद ही यहां सरकार की.

कैसा भयंकर वायरस !
जीवन हुआ इससे विरस
हर शख़्स संक्रामक हुआ
वर्जित हुआ उसका परस

बस मास्क में महफूज है
सांसें सकल संसार की.

संदिग्ध है हर छींक तक
संगीन है वातावरण
अस्पृश्यता ने हर लिया
है सभ्यता का आवरण

चूलें एकाएक हिल उठीं
अस्तित्व के दीवार की .

है चीन से फैला जहर
ईरान पर बरपा कहर
इटली बना शमशान है
बज उठा यू.एस में बजर

संभावनाएं क्षीण हैं
इस व्याधि के उपचार की.

ठप हुए उत्पादन सभी
चुक रहे संसाधन सभी
शेयर सभी लुढ़के पड़े
बेअसर आवाहन सभी

मंदी ने तोड़ी है कमर
दुनिया के कारोबार की.
***
चारो ओर महामारी है

किसका है यह पाप अधम
जीवन ज्यों हुआ अशुभकारी है.
चारो ओर महामारी है.

देखो सब पैगंबर चुप हैं
एक वायरस घूम रहा है
फैल रहा है महासंक्रमण
जिस जिसको यह चूम रहा है
अभी पराजित नहीं समर में
युद्ध अभी इससे जारी है.
चारो ओर महामारी है.

कैसा खौफ़नाक मंजर है
गलियां सूनी सड़कें सूनी
रमे हुए हैं अपने ही घर
खुद ही खुद सब लगाके धूनी
दूकानों पर माल नदारद
कैसी तो यह लाचारी है .
चारो ओर महामारी है.

किस प्रयोगशाला से निकले
ये कद्दावर जैव वायरस
चूस रहे हैं इंसानों का
अब तक का संचित जीवनरस
मास्क पहन कर घूम रहे यम
देखो किस-किस की बारी है.
चारो ओर महामारी है.

अस्त्र शस्त्र के बिना निरंतर
जारी अब यह विश्वयुद्ध है
जो वरदान हुआ करता था
अब वह ही विज्ञान क्रुद्ध है

कर लो जो बचाव संभव है
इसकी मुद्रा संहारी है .
चारो ओर महामारी है.
***

कैसा जिरहबख्तर पहन
फैला कोरोना का कहर
डर है बहुत आठो पहर.

खामोशियां हर ओर हैं
बीमारियों का शोर है
चेहरे यहां दिखते नहीं
यों मास्कमय यह भोर है

किसने यहां घोला जहर
डर है बहुत आठो पहर.

इसका न कोई रूप है
इसका न कुछ आकार है
यह है विकारों से भरा
यह विषों का आगार है

सॉंसें हैं जैसे लीज पर
जीवन है जैसे दर-ब-दर.

रेलें नहीं मेले नहीं
रिक्शे नहीं ठेले नहीं
जीवन की रेलपमेल में
ऐसे तो पल झेले नहीं

जीवन की गति अवरुद्ध है
गतिरुद्ध है सारा शहर.

कस्बे सभी सूबे सभी
डूबे हैं मंसूबे सभी
कैसी लहर यह बेरहम
सपने मगर ऊबे नहीं

है ग़ज़ल-सी यह ज़िन्दगी
खो गयी है जिसकी बहर.

कैसा समय कैसी सदी !
हर पल यहां पर त्रासदी
इक वायरस के कोप से
थम-सी गयी जीवन-नदी
दुनिया न बन जाए कहीं
बस आज की ताज़ा खबर .

फैला कोरोना का कहर
डर है बहुत आठो पहर.
***
इंसानों की दुनिया कितनी नश्वर है!!

मृत्यु उपत्यका कहीं न बन जाए यह देश.
घूम रहा है महासंक्रमण
बदले भेष.

इसके पाँव हजारों, लाखों बाहें हैं
इसकी मंजिल एक, हजारों राहें हैं
इसके मंसूबे हिंसक
मन में विद्वेष.

हाथ मिला ले किसे पकड़ ले नहीं पता
किसे बुखार जुकाम जकड़ ले नहीं पता
इसके लिए संत आखिर क्या
औ दरवेश!

महासंक्रमण की गति कितनी सत्वर है
इंसानों की दुनिया कितनी नश्वर है
नही मानता यह
हिटलर का भी आदेश.

रहो अकेले घर में अपनी मस्ती से
दूर रहो पर भीड़ भाड़ की बस्ती से
अगर बचोगे तभी
बचेगा अपना देश.
घूम रहा है महा संक्रमण बदले भेष.
***

यह महानगर की सुबह
तनिक अलसाई सी
खाली सड़कों पर
डोल रही तनहाई सी
फिर पेड़ों की शाखों पर कोयल कुहुक उठी
कुदरत भी जैसे इठलाकर खुद चहक उठी.

कोलाहल जीवन का कुछ थमा-थमा सा है
सन्नाटे का यह छंद नया-नया सा है
सुन पड़ती ऐसे में आवाजें साफ साफ
वह शोरीलापन दिन का थमा-थमा सा है
यह कोविद से लड़ने की इकजुट तैयारी
यह महासंक्रमण से बचने की हुशियारी
सांसें ये यम की भेंट कहीं न चढ़ जाएं
जीवन की टहनी पर उम्मीदें पुलक उठीं.

यह कुदरत जिस पर नित प्रहार होते आए
नदियों तालों पर्वत पर पूँजी के साए
ये वन्य जन्तु हैं भक्ष्य बने जब से, तब से
दुनिया पर महा संक्रमण के बादल छाए
है महाप्रलय की वेला जैसै घिर आई
उच्छल सागर में डूब रहा ज्यों नौकाई
फरियाद सतत् जीने की कातर ख्वाहिश की
आंखों से टप-टप आंसू जैसी ढुलक उठी.
***

कोरोना कविता

कोरोना ग़ज़ल:
यही संकट रहा तो

यही संकट रहा तो ज़िन्दगी के दुख कौन बांटेगा
अकेलेपन से लड़ते आदमी के दुख कौन बांटेगा.

जहां पर दूरियां दिल में बहुत पहले से हों कायम
वहां पर पास रह कर आदमी के दुख कौन बांटेगा.

अभी तो हैं हवाओं की नमी में वायरस जिन्दा
अभी तो गले मिल कर भाइयों के दुख कौन बांटेगा.

यहां पर बंद सब कुछ काम हाथों में नहीं कोई
यहां भूखे औ प्यासे आदमी के दुख कौन बांटेगा.

अभी सब 'अपने अपने अजनबी' से नजर आते हैं
अभी अपनाइय्यत के साथ सुख-दुख कौन बांटेगा.

अकेला लड़ रहा है वायरस से वह अकेले में
कि इस तनहाई में बीमार का दुख कौन बांटेगा .

के जिस दुनिया में होंगी वायरस की खेतियां उसमें
तड़प कर मरने वालों के भला दुख कौन बांटेगा.

ये दुनिया क्या इसी दिन के लिए हमने बनाई है
न होगा आदमी तो आदमी के दुख कौन बांटेगा.
***

कोरोना कविता

कोरोना अवधी गीतः
भवा लॉकडाउन भवा लॉकडाउन

कोरोना के डर से भवा लॉकडाउन

पता लाग कौनौ बीमारी है संचरी
दवा जेकै अब्बौ कतौं नाय निकरी
ई मनइन से मनइन के बीचे मा फैले
कोरोना से दुनिया है बेहाल भइले
कैसे निकरिबै मजूरी के खातिर.
भवा लॉक डाउन भवा लॉक डाउन.

कल कारखानन का सबका है मारिस
गरीबन के किस्मत पै डाका है डारिस
ई सलकन्ते केहुका रहय नाही देये
नवा साल मा इहै तोहफा ई देये
छुआछूत फिरि से है सबका नचाइस
भवा लॉक डाउन भवा लॉकडाउन.

जेनके रहा पइसा ओनहीं के राशन
मगर खाली पेटे चले नाही भाषण
बिना कामधंधा के नाही गुजारा
नही रोजमजुरिया कै कौनौ सहारा
केतनौ कै ई चूल्हा चौका बुझाइस.
भवा लॉक डाउन भवा लॉक डाउन.

सड़की पै निकरी तौ बरसावैं लाठी
मगर का करैं जेकेरे लोटा न टाठी
पोटली उठायेन गदेलन का लइके
सबेरे चलेन गोड़ देउतन का धइके
उबारैं प्रभू औ हरैं सबकै पीरा.
भवा लॉक डाउन भवा लॉक डाउन.

इहै अब अरज बा पहुंच जाई घर मा
गुजारा न होए हियां भइया डर मा
ई परदेस मा केहू तोहका न बूझे
बिमरिया हंकरिया मा केहू न पूछे
बचब जौ कोरोना से भुखिया से मरबै.
भवा लॉक डाउन भवा लॉक डाउन.
***

कोरोना कविता

कोरोना अवधी गीत:
कोरोना कै मार भइया कब्बौ न भूले

जड़िया से उजड़े जमिनिया से उजड़े
सगरा सहरवा नगरिया से उजड़े
गरीबी कै मार भइया कब्बौ न भूले
कोरोना कै मार भइया कब्बौ न भूले.

कतहुं काम धंधा न रोटी औ पानी
मिली माटी मा भइया सारी जवानी
बिना काम के केसे पइसा जुहाई
ई चूल्हा जले कइसे केका बताई
बिना घर केरावा कहॉं से जुटौबै
ई राशन औ पानी कहॉं से जुहौबै
कही का ? मुसीबत ई कब्बौ न भूले
कोरोना कै मार भइया कब्बौ न भूले.

मजूरी धतूरी इहै हम करी थै
रोजाना कमाई से खर्चा भरी थै
मगर जब से बंदी भइस है सहर मा
न पइसा न कौड़ी मजूरी सहर मा
कहॉं से भला पेट बच्चन कै भरबै
कहॉं से उधारी दुकानी कै भरबै
ई धिक्कार दुत्कार कब्बौ न भूले
कोरोना कै मार भइया कब्बौ न भूले.

बतावा तूहीं अब कहां भागि जाई
भला कौनी बिल मा कहां हम लुकाई
गउना मा एकै खबर से जब से पाईं
चिंता मा बाटी अमेठी मा माई
इहै सोचि के हम चले बिन सवारी
कबौ तौ पहुंच जाबै घर औ दुवारी
लचारी कै ई मार कब्बौ न भूले
कोरोना कै मार भइया कब्बौ न भूले.

बहुत जोर के भइया झटका लगा बा
न टेंटे मा पइसा न रोकड़ जमा बा
कहां जाइ लंगर सहर मा टटोली
सबै ठांव देखित है ठेला और ठेली
कइसै रही भवा देसवा बिराना
अकेलै मा लागइ सहर जेलखाना
अकेलै कै ई मार कब्बौ न भूले
कोरोना कै मार भइया कब्बौ न भूले.

कोरोना कविता

रखो स्वछता अब किसी से डरो ना।
बिना काम के आप घूमो फ़िरो ना।1

सुरक्षा सदा प्राथमिक कार्य हो अब।
प्रसारित नहीं हो सकेगा करोना।2

छिपाओ नहीं व्याधि का शक कभी हो।
स्वतः ध्यान खुद का अकेले धरो ना।3

प्रसारित उपायों का' पालन करो नित।
नहीं भ्रांति कोई हृदय में भरो ना।4

सही सूचना दो सभी को डरे बिन।
विपद विश्व की आज मिल कर हरो ना।5

महामारियाँ प्राण लेतीं अचानक।
बिना जानकारी कभी मत मरो ना।6

भलाई इसी में चिकित्सा करो तुम।
अगर छू गया हो कहीं से कोरोना।7

कोरोना कविता

मिलकर कोरोना को हराना है,
घर से हमें कहीं नहीं जाना है,
हाथ किसी से नहीं मिलना है,
चहरे से हाथ नहीं लगाना है,
बार-बार अच्छे से हाथ धोने जाना है,
सेनेटाइज करके देश को स्वच्छ बनाना है,
बचाव ही इलाज है यह समझाना है,
कोरोना से हमकों नहीं घबराना है,
सावधानी रखकर कोरोना को मिटाना है,
देशहित में सभी को यह कदम उठाना है।

कोरोना कविता

आज की नहीं बरसों की सोच रहे,
सब्ज़ी राशन पर भीड़ बन टूट पड़े।
तुम बिन शहर अधूरा परिवार अधूरे,
मेरी ही संतान तुम क्यूं बेसब्र हो रहे।

कर्मठ पुलिस दल सेवा भावी डॉक्टर,
प्रशासन सब मिल निकाल रहे हल।
तुम मेरा साथ दो ये है मुश्किल अवसर,
धीर धरो घर में रहो विनती पल-पल।

तुम्हीं ने मुझे बचाया जब आग लगी राजवाड़ा में तुम्हीं ने दंगों में दिखाया खुलूस।
तुम्हीं मुझे ज़िंदा रखते हो निकाल कर रंगपंचमी की गेर और अनंत चतुर्दशी का जुलूस।
तुम्हीं ने पहनाया मुझे नंबर वन का ताज दिया मेरी रूह को सुकून।
क्यूं न अब की बार भी कोरोना को हरा कर ख़ुद पर करें ग़ुरूर।

भूल जाओ हिंदू हो या मुसलमान
तुम सब हो केवल हो इंसान
तुमसे इतनी सी अर्ज़ है अवाम .....

कोरोना महामारी छूत की बीमारी है।
ऐसे में घर से निकलना नादानी है।
सां स लेने में दिक़्क़त, सर्दी खांसी ,
बुखार यही कोविड-19 की निशानी है।।

हमारी तुम्हारी नहीं जग की यही कहानी है।
कोरोना से लड़ने की तकनीक नई पुरानी है।
मास्क पहनना,भीड़ से बचना,घर में रहना,
साबुन से हाथ धोना ज़िम्मेदारी हमारी है।।

कोरोना कविता

महामारी को हराना है

जिंदगी को बचाना है

ठीक है।

सरकार के नियमों का पालन करना है

अपना दिमाग नहीं लगाना है

ठीक है।

सूखी रूखी रोटी खाएंगे

 बाहर नहीं जाएंगे

ठीक है।

घर पर समय बिताएंगे

अपनों को समझाएंगे

ठीक है।

सामाजिक दूरियां बढ़ाएंगे

भीड़ में नहीं जाएंगे

ठीक है।

तबियत अपनी संभालेंगे

डॉक्टर को दिखाएंगे

ठीक है।

कोरोना को हराएं गए

भारत को जिताएंगे

ठीक है।

कोरोना कविता

हे ईश्वर आन पड़ा है कहर कोरोना
विनती मेरे मालिक तुम मेहर करोना



भूल गए थे हम हस्ती तुम्हारी
मालिक संभाल ले अब कश्ती हमारी
अपने बच्चों को अब और सीख मत दो ना
विनती मेरे मालिक तुम मेहर करोना



प्रकृति की वेदना हम क्यों ना सुन पाए
आज अपनों की चीखे हमें यह बताएं
बहुत बड़ा ऋण प्रकृति का है चुकाना
विनती मेरे मालिक तुम मेहर करोना



रूह कांप जाती है आज ऐसी घड़ी है
फिर भी तेरी रहमत की आशा सबसे बड़ी है
ऐ विधाता विधि का यह लेख बदल दो ना
विनती मेरे मालिक तुम मेहर करोना



मोल क्या है अपनों का आज तूने सिखाया
घर बंद कर दिल के दरवाजों को खुलवाया
मकसद तेरा था हम सोते हुए को जगाना
विनती मेरे मालिक तुम मेहर करोना



आज हिंदू मुस्लिम सिख हो या इसाई
सबकी आंखें करुणा से हैं भर आई
कितना मुश्किल है अपनों से दूर जाना
विनती मेरे मालिक तुम मेहर करोना



नतमस्तक हम देश के उन रख वालों के
खुद को भूल जो लगे हैं लड़ने महामारी से
इनके नाम जले दियो को मत बुझाना
विनती मेरे मालिक तुम मेहर करोना



गाते पंछी, निर्मल नदिया वायु बिन जहर
बरसों के बाद आज देखी ऐसी सहर
साफ खुला आसमाँ कहे अब तो समझोना
विनती मेरे मालिक तुम मेहर करोना



मानते हम हुई भूल हमसे बड़ी है
माफ बच्चों को करना जिम्मेदारी तेरी है
हाथ जोड़े इन बेबस बच्चों को क्षमा दो ना
विनती मेरे मालिक तुम महर करोना



हे ईश्वर आन पड़ा है कहर कोरोना
विनती मेरे मालिक तुम मेहर करो ना

कोरोना कविता

चीन की गलती की सजा भुगत रहा संसार,
हर इंसान हो गया बेबस और लाचार।
सूनी हो गए सड़क मोहल्ले सहम गए सब लोग,
दुनिया भर में फैल गया कोरोना का रोग।
मेरा भारत देश देखो कितना हुआ वीरान,
दुनिया घरों में कैद हुई तनहा हुआ इंसान ।
तबलीगी जमातिओ ने कर दिया बंटाधार ,
मानवता के इन दुश्मनों को अब कर दो आर या पार।
इटली फ्रांस स्पेन अमेरिका हो गए लाचार ,
दुनिया भर में आज मची है देखो हाहाकार ।
कैद घरों में बैठे बैठे हो गए सब बोर ,
किसी ने ना सोचा था आएगा ऐसा भी दौर।
ना जाने यह लॉकडाउन अभी क्या-क्या रंग दिखाएगा,
कोई खा खाकर मरेगा कोई बिना खाए मर जाएगा ।
यूं तो खाने वाले खा रहे घर बैठे पकवान,
लेकिन गरीबों की फसी आज हलक में जान ।
पर चाहे कुछ भी हो भैया घर में रहना मजबूरी है ,
लाखों की जान बचाने को लॉक डाउन जरूरी है ।
मंदिरों में लगे हैं ताले कैसे दिन है आए,
देखें कितने दिन भक्तों के बिन तू भी रह पाए।

कोरोना कविता

बंद हुआ दुनिया का सुख चैन से सोना

और शुरू हुआ है जोर जोर से रोना।

क्योंकि पीछे पड़ गया एक अत्यंत बौना

भयानक बाहुबली नन्हा मुन्ना कोरोना।।

कोरोना बाबू घुस रहा चोरी चोरी हर देश में

बंद कर डाला लोगों का आना जाना विदेश में।

हाथ मिलना दूर हुआ, दूर से करो राम राम

शनिवार, 25 अप्रैल 2020

कोरोना महामारी- सावधानियां...

*कोरोना को जाने*

*प्रश्न (1) :- क्या कोरोना वायरस को ख़त्म किया जा सकता है*
*उत्तर:-*
नहीं! कोरोना वायरस एक निर्जीव कण है जिस पर *चर्बी की सुरक्षा-परत* चढ़ी हुई होती है। *यह कोई ज़िन्दा चीज़ नहीं है, इसलिये इसे मारा नहीं जा सकता* बल्कि यह ख़ुद ही रेज़ा-रेज़ा (कण-कण) होकर ख़त्म होता है।

*प्रश्न( 02):-. कोरोना वायरस के विघटन (रेज़ा-रेज़ा होकर ख़त्म होने) में कितना समय लगता है?*
*उत्तर:-*
कोरोना वायरस के विघटन की मुद्दत का दारोमदार, *इसके आसपास कितनी गर्मी या नमी है? या जहाँ ये मौजूद है, उस जगह की परिस्थितियां क्या हैं?* इत्यादि बातों पर निर्भर करता है।

*प्रश्न(03):-. इसे कण-कण में कैसे विघटित किया जा सकता है?*
*उत्तर:-*
कोरोना वायरस बहुत कमज़ोर होता है। *इसके ऊपर चढ़ी चर्बी की सुरक्षा-परत फाड़ देने से यह ख़त्म हो जाता है।* ऐसा करने के लिये साबुन या डिटर्जेंट के झाग सबसे ज़्यादा प्रभावी होते हैं। *20 सेकंड या उससे ज़्यादा देर तक साबुन/डिटर्जेंट लगाकर हाथों को रगड़ने से इसकी सुरक्षा-परत फट जाती है* और ये नष्ट हो जाता है। इसलिये अपने शरीर के खुले अंगों को बार-बार साबुन व पानी से धोना चाहिये, ख़ास तौर से उस वक़्त जब आप बाहर से घर में आए हों।

*प्रश्न(04):- क्या गरम पानी के इस्तेमाल से इसे ख़त्म किया जा सकता है?*
*उत्तर:-*
हाँ! गर्मी चर्बी को जल्दी पिघला देती है। इसके लिये कम से कम 25 डिग्री गर्म (गुनगुने से थोड़ा तेज़) पानी से शरीर के अंगों और कपड़ों को धोना चाहिये। छींकते या खाँसते वक़्त इस्तेमाल किये जाने वाले रुमाल को 25 डिग्री या इससे ज़्यादा गर्म पानी से धोना चाहिये। गोश्त, चिकन या सब्ज़ियों को भी पकाने से पहले 25 डिग्री तक के पानी में डालकर धोना चाहिये।

*प्रश्न(05):- क्या एल्कोहल मिले पानी (सैनीटाइजर) से कोरोना वायरस की सुरक्षा-परत को तोड़ा जा सकता है?*
*उत्तर:-*
हाँ! लेकिन उस सैनीटाइजर में एल्कोहल की मात्रा 65 पर्सेंट से ज़्यादा होनी चाहिये तभी यह उस पर चढ़ी सुरक्षा-परत को पिघला सकता है, वरना नहीं।

*प्रश्न(06):-क्या ब्लीचिंग केमिकल युक्त पानी से भी इसकी सुरक्षा-परत तोड़ी जा सकती है?*
*उत्तर:-*
हाँ! लेकिन इसके लिये *पानी में ब्लीच की मात्रा 20% होनी चाहिये।* ब्लीच में मौजूद क्लोरीन व अन्य केमिकल कोरोना वायरस की सुरक्षा-परत को तोड़ देते हैं। *इस ब्लीचिंग-युक्त पानी का उन सभी जगहों पर स्प्रे करना चाहिये जहाँ-जहाँ हमारे हाथ लगते हैं।* टीवी के रिमोट, लैपटॉप और मोबाइल फ़ोन को भी ब्लीचिंग-युक्त पानी में भिगोकर निचोड़े गये कपड़े से साफ़ करना चाहिये।

*प्रश्न(07):-क्या कीटाणुनाशक दवाओं के द्वारा कोरोना वायरस को ख़त्म किया जा सकता है?*
*उत्तर:-*
नहीं! कीटाणु सजीव होते हैं इसलिये उनको *एंटीबायोटिक* यानी कीटाणुनाशक दवाओं से ख़त्म किया जा सकता है लेकिन *वायरस निर्जीव कण होते हैं, इन पर एंटीबायोटिक दवाओं का कोई असर नहीं होता।* यानी कोरोना वायरस को एंटीबायोटिक दवाओं से ख़त्म नहीं किया जा सकता।

*प्रश्न(08):-कोरोना वायरस किस जगह पर कितनी देर तक बाक़ी रहता है?*

*उत्तर:-*
*० कपड़ों पर :* तीन घण्टे तक
*० तांबा पर :* चार घण्टे तक
*० कार्डबोर्ड पर :* चौबीस घण्टे तक
*० अन्य धातुओं पर :* 42 घण्टे तक
*० प्लास्टिक पर :* 72 घण्टे तक

*इस समयावधि के बाद कोरोना वायरस ख़ुद-ब-ख़ुद विघटित हो जाता है। लेकिन इस समयावधि के दौरान किसी इंसान ने उन संक्रमित चीज़ों को हाथ लगाया और अपने हाथों को अच्छी तरह धोये बिना नाक, आँख या मुंह को छू लिया तो वायरस शरीर में दाख़िल हो जाएगा और एक्टिव हो जाएगा।*

*प्रश्न(09):-क्या कोरोना वायरस हवा में मौजूद हो सकता है? अगर हाँ तो ये कितनी देर तक विघटित हुए बिना रह सकता है?*
*उत्तर:-*
जिन चीज़ों का सवाल न. 08 में ज़िक्र किया गया है उनको हवा में हिलाने या झाड़ने से कोरोना वायरस हवा में फैल सकता है। कोरोना वायरस हवा में तीन घण्टे तक रह सकता है, उसके बाद ये ख़ुद-ब-ख़ुद विघटित हो जाता है।

*प्रश्न(10):-किस तरह का माहौल कोरोना वायरस के लिये फायदेमंद है और किस तरह के माहौल में वो जल्दी विघटित होता है?*
*उत्तर:-*
कोरोना वायरस क़ुदरती ठण्डक या AC की ठण्डक में मज़बूत होता है। इसी तरह अंधेरे और नमी (Moisture) वाली जगह पर भी ज़्यादा देर तक बाक़ी रहता है। यानी इन जगहों पर जल्दी विघटित नहीं होता। *सूखा, गर्म और रोशनी वाला माहौल कोरोना वायरस के जल्दी ख़ात्मे में मददगार है।* इसलिये जब तक इसका प्रकोप है तब तक AC या एयर कूलर का इस्तेमाल न करें।

*प्रश्न(11):-सूरज की तेज़ धूप का कोरोना वायरस पर क्या असर पड़ता है?*
*उत्तर:-*
सूरज की धूप में मौजूद *अल्ट्रावायलेट किरणें* कोरोना वायरस को तेज़ी से विघटित कर देती है यानी तोड़ देती है क्योंकि सूरज की तेज़ धूप में उसकी सुरक्षा-परत पिघल जाती है। इसीलिये चेहरे पर लगाए जाने वाले फेसमास्क या रुमाल को अच्छे डिटर्जेंट से धोने और तेज़ धूप में सुखाने के बाद दोबारा इस्तेमाल किया जा सकता है।

*प्रश्न(12):-क्या हमारी चमड़ी (त्वचा) से कोरोना वायरस शरीर में जा सकता है?*
*उत्तर:-*
नहीं! तंदुरुस्त त्वचा से कोरोना संक्रमण नहीं हो सकता। अगर त्वचा पर कहीं कट लगा है या घाव है तो इसके संक्रमण की संभावना है।

*प्रश्न(13):-क्या सिरका मिले पानी से कोरोना वायरस विघटित हो सकता है?*
*उत्तर:-*
नहीं! सिरका कोरोना वायरस की सुरक्षा-परत को नहीं तोड़ सकता। इसलिये सिरका वाले पानी से हाथ-मुंह धोने से कोई फ़ायदा नहीं है।

      साभार
वाशिंगटन युनिवर्सिटी
     USA

नोट-- कपड़ा, दरवाजा, घंटी का बटन, जूता चप्पल,थैला, गाड़ी का हेंडल, चाबी, गिलास, सब्जी, फल, मुद्रा, आदि बाहरी संपर्क में आने के बाद आंख, कान, नाक,मुंह एवम गुप्त अंगों को ना छुए।

नमक मिला गरम पानी से गरारा जरूर करे, चाय या काफी या गरम पानी पीते रहे, कोरोना प्रवेश कर भी जाये तो श्वसन तक पहुच नही पायेगा और आप सुरक्षित रहेंगे।

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