गुरुवार, 4 अक्तूबर 2018

जीवन की महान कसौटी

महान व्यक्ति कौन होता है? महानता की कसौटी क्या है ? महानता कोई लेबल नहीं है और न ही कोई बाहरी आवरण है। व्यक्ति की कार्यशैली , व्यवहार , कर्म , वाणी , रहन - सहन , प्रकृति यानी स्वभाव आदि ही उसकी महानता आंकने के मापदंड हैं। महानता भाग्य की फसल है और पुरुषार्थ की निष्पत्ति है। यह हर किसी को नसीब नहीं होती। यह सतत जागरूकता , जीवन के प्रति सकारात्मकता और अच्छाई की ग्रहणशीलता से ही मिलती है। कुछ अलग पहचान बनाने या महानता को हासिल करने के लिए जरूरी है कि हम जिस व्यक्ति की तरह महान बनना चाहते हैं , उसका आदर करना और उसके अनुसार आचरण करना सीखें। प्रत्येक व्यक्ति अच्छा और महान बनना चाहता है। भगवान महावीर ने कहा है कि व्यक्ति जन्म से नहीं , कर्म से महान बनता है। अग्नि पुराण में महापुरुषों के विशिष्ट गुणों का उल्लेख मिलता है। इसके अनुसार वही व्यक्ति महान है जो कर्तव्यनिष्ठ है , ईर्ष्या , डाह , निंदा या आलोचना आदि से दूर रहता है। संपूर्ण मानव जाति के प्रति सद्व्यवहार करता है। ' णो हीणे नो अइरत्ते ' अर्थात् किसी को हीन नहीं समझने वाला व्यक्ति ही दूसरों से अलग और महान हो सकता है। ऐसे लोगों में पूरी मानवता के प्रति सम्मान होता है। ऐसे लोगों के अंत : करण में पवित्रता का वास होता है। प्रेम और परोपकार जिसकी भुजाएं होती हैं , निर्मल चरित्र जिसका जीवन मंत्र है , जिसका व्यक्तित्व धैर्य , शील , सौजन्य , सदाचार से महकता है , ऐसा व्यक्ति ही दूसरों के लिए आदरणीय बन पाता है। ऐसे लोग फौलादी व्यक्तित्व के मालिक होते हैं। वे जीवन का कोई भी फैसला बिना सोचे - विचारे और जल्दबाजी में नहीं करते। ऐसे व्यक्ति अन्याय और शोषण को सहते नहीं। वे दूसरों का दमन करने की बजाय उनका मार्गदर्शन करते हैं। मानवीय संवेदना के कारण वे सबके सुख - दुख को अपना मानते हैं। उनकी पूरी जिंदगी औरों के लिए समर्पित हो जाती है। ऐसे व्यक्ति श्रेष्ठता का प्रमाण नहीं देते , बल्कि वे स्वयं प्रमाण होते हैं। उनकी यही सोच और कर्मशीलता उनकी महानता को प्रदर्शित करती है। विपत्ति में धैर्य , उत्कर्ष में विनम्रता , सभा में वाक - चातुर्यता , युद्ध में वीरता , यश में समता , वाणी में सत्यता महान मानव के स्वाभाविक गुण हैं। नीतिशतक में भर्तृहरि ने महानता की परिभाषा इस रूप में प्रस्तुत की है - निंदा - प्रशंसा , संपत्ति - विपत्ति , जीवन - मरण की स्थिति में भी महापुरुष कभी अपना संतुलन नहीं खोते। उनका व्यक्तित्व ' वज्रादपि कठोराणि कुसुमादपि कोमलानि ' यानी मृदुता और कठोरता का संगम होता है। अपेक्षा के अनुरूप ही वे मृदुता अथवा कठोरता का प्रयोग करते हैं। महानता और सफल नेतृत्व की यही कसौटी है। यह महज कल्पना है कि कोई व्यक्ति महज सत्ता , संपत्ति और शक्ति के द्वारा महानता अर्जित कर सकता है। राम , कृष्ण , बुद्ध , महावीर , गांधी , आचार्य तुलसी विश्व क्षितिज पर सूर्य की तरह चमके थे। उनकी इसमें किसी सत्ता या शक्ति ने कोई मदद नहीं दी थी। बल्कि मर्यादा , कर्मयोग , करुणा और अहिंसा का पालन करने की उनकी नीतियों ने उन्हें ऐसी ऊंचाइयां प्रदान की थीं। महानता आरोपित नहीं होती , यह तो एक नैसर्गिक क्षमता है। जो व्यक्ति अपने मन में अहंकार न आने दे और जो यथार्थ है , वही कहे तो कह सकते हैं कि उसमें महानता के लक्षण हैं। फ्रांस के एक शीर्षस्थ राजनीतिज्ञ से किसी ने पूछा - आप इतना अधिक काम करने के साथ ही सामाजिक कार्यों में भाग लेने के लिए कैसे समय निकाल लेते हैं ? उनका उत्तर था - मैं आज का काम आज ही कर लेता हूं। यह बात सच है कि जो व्यक्ति एक - एक पल को कीमती समझकर उसका सही उपयोग करता है , समय को बिल्कुल नष्ट नहीं करता , वह अपने सौभाग्य का निर्माण कर सकता है। भगवान महावीर ने गौतम से कहा - गौतम ! क्षण भर भी प्रमाद मत करो। अर्थात् एक क्षण भी व्यर्थ मत जाने दो। एक क्षण या एक सेकंड काल की सबसे छोटी इकाई समय है। इतने सूक्ष्म समय का भी जो सम्मान करना जानता है , इसके महत्व को समझता है , वह अवश्य ही ऊंचाइयों को छू सकता है। ऐसे व्यक्ति ही अपने जीवन में महानता का वरण करते हैं।

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