रविवार, 26 अप्रैल 2020

कोरोना कविता

हे ईश्वर आन पड़ा है कहर कोरोना
विनती मेरे मालिक तुम मेहर करोना



भूल गए थे हम हस्ती तुम्हारी
मालिक संभाल ले अब कश्ती हमारी
अपने बच्चों को अब और सीख मत दो ना
विनती मेरे मालिक तुम मेहर करोना



प्रकृति की वेदना हम क्यों ना सुन पाए
आज अपनों की चीखे हमें यह बताएं
बहुत बड़ा ऋण प्रकृति का है चुकाना
विनती मेरे मालिक तुम मेहर करोना



रूह कांप जाती है आज ऐसी घड़ी है
फिर भी तेरी रहमत की आशा सबसे बड़ी है
ऐ विधाता विधि का यह लेख बदल दो ना
विनती मेरे मालिक तुम मेहर करोना



मोल क्या है अपनों का आज तूने सिखाया
घर बंद कर दिल के दरवाजों को खुलवाया
मकसद तेरा था हम सोते हुए को जगाना
विनती मेरे मालिक तुम मेहर करोना



आज हिंदू मुस्लिम सिख हो या इसाई
सबकी आंखें करुणा से हैं भर आई
कितना मुश्किल है अपनों से दूर जाना
विनती मेरे मालिक तुम मेहर करोना



नतमस्तक हम देश के उन रख वालों के
खुद को भूल जो लगे हैं लड़ने महामारी से
इनके नाम जले दियो को मत बुझाना
विनती मेरे मालिक तुम मेहर करोना



गाते पंछी, निर्मल नदिया वायु बिन जहर
बरसों के बाद आज देखी ऐसी सहर
साफ खुला आसमाँ कहे अब तो समझोना
विनती मेरे मालिक तुम मेहर करोना



मानते हम हुई भूल हमसे बड़ी है
माफ बच्चों को करना जिम्मेदारी तेरी है
हाथ जोड़े इन बेबस बच्चों को क्षमा दो ना
विनती मेरे मालिक तुम महर करोना



हे ईश्वर आन पड़ा है कहर कोरोना
विनती मेरे मालिक तुम मेहर करो ना

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