रविवार, 26 अप्रैल 2020

कोरोना कविता

चीन की गलती की सजा भुगत रहा संसार,
हर इंसान हो गया बेबस और लाचार।
सूनी हो गए सड़क मोहल्ले सहम गए सब लोग,
दुनिया भर में फैल गया कोरोना का रोग।
मेरा भारत देश देखो कितना हुआ वीरान,
दुनिया घरों में कैद हुई तनहा हुआ इंसान ।
तबलीगी जमातिओ ने कर दिया बंटाधार ,
मानवता के इन दुश्मनों को अब कर दो आर या पार।
इटली फ्रांस स्पेन अमेरिका हो गए लाचार ,
दुनिया भर में आज मची है देखो हाहाकार ।
कैद घरों में बैठे बैठे हो गए सब बोर ,
किसी ने ना सोचा था आएगा ऐसा भी दौर।
ना जाने यह लॉकडाउन अभी क्या-क्या रंग दिखाएगा,
कोई खा खाकर मरेगा कोई बिना खाए मर जाएगा ।
यूं तो खाने वाले खा रहे घर बैठे पकवान,
लेकिन गरीबों की फसी आज हलक में जान ।
पर चाहे कुछ भी हो भैया घर में रहना मजबूरी है ,
लाखों की जान बचाने को लॉक डाउन जरूरी है ।
मंदिरों में लगे हैं ताले कैसे दिन है आए,
देखें कितने दिन भक्तों के बिन तू भी रह पाए।

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