रविवार, 26 अप्रैल 2020

कोरोना कविता

कोरोना अवधी गीत:
कोरोना कै मार भइया कब्बौ न भूले

जड़िया से उजड़े जमिनिया से उजड़े
सगरा सहरवा नगरिया से उजड़े
गरीबी कै मार भइया कब्बौ न भूले
कोरोना कै मार भइया कब्बौ न भूले.

कतहुं काम धंधा न रोटी औ पानी
मिली माटी मा भइया सारी जवानी
बिना काम के केसे पइसा जुहाई
ई चूल्हा जले कइसे केका बताई
बिना घर केरावा कहॉं से जुटौबै
ई राशन औ पानी कहॉं से जुहौबै
कही का ? मुसीबत ई कब्बौ न भूले
कोरोना कै मार भइया कब्बौ न भूले.

मजूरी धतूरी इहै हम करी थै
रोजाना कमाई से खर्चा भरी थै
मगर जब से बंदी भइस है सहर मा
न पइसा न कौड़ी मजूरी सहर मा
कहॉं से भला पेट बच्चन कै भरबै
कहॉं से उधारी दुकानी कै भरबै
ई धिक्कार दुत्कार कब्बौ न भूले
कोरोना कै मार भइया कब्बौ न भूले.

बतावा तूहीं अब कहां भागि जाई
भला कौनी बिल मा कहां हम लुकाई
गउना मा एकै खबर से जब से पाईं
चिंता मा बाटी अमेठी मा माई
इहै सोचि के हम चले बिन सवारी
कबौ तौ पहुंच जाबै घर औ दुवारी
लचारी कै ई मार कब्बौ न भूले
कोरोना कै मार भइया कब्बौ न भूले.

बहुत जोर के भइया झटका लगा बा
न टेंटे मा पइसा न रोकड़ जमा बा
कहां जाइ लंगर सहर मा टटोली
सबै ठांव देखित है ठेला और ठेली
कइसै रही भवा देसवा बिराना
अकेलै मा लागइ सहर जेलखाना
अकेलै कै ई मार कब्बौ न भूले
कोरोना कै मार भइया कब्बौ न भूले.

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