अस्माकं तु विशिष्टा ये तान्निबोध द्विजोत्तम |
नायका मम सैन्यस्य संज्ञार्थं तान्ब्रवीमि ते || ७ ||
अस्माकम् - हमारे; तु - लेकिन; विशिष्टाः - विशेष शक्तिशाली; ये - जो; निबोध - जरा जान लीजिये, जानकारी प्राप्त कर लें, द्विज-उत्तम - हे ब्राह्मणश्रेष्ठ; नायकाः - सेनापति, कप्तान; मम - मेरी; सैन्यस्य - सेना के; संज्ञा-अर्थम् - सूचना के लिए; तान् - उन्हें; ब्रवीमि - बता रहा हूँ; ते - आपको ।
*भावार्थ*
किन्तु हे ब्राह्मणश्रेष्ठ! आपकी सूचना के लिए मैं अपनी सेना के उन नायकों के विषय में बताना चाहूँगा जो मेरी सेना को संचालित करने में विशेष रूप से निपुण हैं ।
*श्लोक 1 . 8*
भवान्भीष्मश्र्च कर्णश्र्च कृपश्र्च समितिंजयः |
अश्र्वत्थामा विकर्णश्र्च सौमदत्तिस्तथैव च || ८ ||
भवान् - आप; भीष्मः - भीष्म पितामह; च - भी; कर्णः - कर्ण; च - और; कृपः - कृपाचार्य; च - तथा; समितिञ्जयः - सदा संग्राम-विजयी; अश्र्वत्थामा - अश्र्वत्थामा; विकर्णः - विकर्ण; च - तथा; सौमदत्तिः - सोमदत्त का पुत्र; तथा - भी; एव - निश्चय ही; च - भी।
*भावार्थ*
मेरी सेना में स्वयं आप, भीष्म, कर्ण, कृपाचार्य; अश्र्वत्थामा, विकर्ण तथा सोमदत्त का पुत्र भूरिश्रवा आदि हैं जो युद्ध में सदैव विजयी रहे हैं ।
*तात्पर्य*
दुर्योधन उन अद्वितीय युद्धवीरों का उल्लेख करता है जो सदैव विजयी होते रहे हैं । विकर्ण दुर्योधन का भाई है, अश्र्वत्थामा द्रोणाचार्य का पुत्र है और सोमदत्ति या भूरिश्रवा बाह्लिकों के राजा का पुत्र है । कर्ण अर्जुन का आधा भाई है क्योंकि वह कुन्ती के गर्भ से राजा पाण्डु के साथ विवाहित होने के पूर्व उत्पन्न हुआ था । कृपाचार्य की जुड़वा बहन द्रोणाचार्य को ब्याही थी ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
Thanks for giving your comments.