*यदि मनुष्य के मन में लोभ की ऐसी वृत्ति आवे कि हमें लाभ हो, तो उसे अस्वाभाविक नहीं कहा जा सकता, क्योंकि यह व्यक्ति के स्वभाव में है कि वह जब कोई कार्य करता है, तो उसमें लाभ चाहता है- नौकरी में लाभ, व्यापार में लाभ। अतएव यह नहीं कहा जा सकता कि लाभ की वृत्ति समाज से पूरी तरह मिट जाय या मिट जानी चाहिए। लोभ में में यदि एक ही इच्छा आवे तब वह समाज के लिए प्रायः घातक नहीं होती है, लेकिन जब लोभ की वृत्ति के रूप में मंथरा जीवन में आती है तब वह ऐसी प्रेरणा करती है कि व्यक्ति कभी भी एक वरदान नहीं माँगता, वह हमेशा दो वरदान माँगता है, कहता है कि मुझे लाभ हो और बगल वाले को घाटा जरूर हो। ऐसे लोभी को अपने लाभ का पूरा आनन्द तब मिलता है, जब दूसरे की हानि होती है। जब लोभ में ऐसी प्रवृत्ति आती है, तब वह रामराज्य में बाधक बन जाती है। कैकेयी और प्रतापभानु दोनों के जीवन में ऐसा विकृत लोभ दिखाई पड़ता है, पर अन्त में जाकर कैकेयी का रोग साध्य हो गया, जबकि प्रतापभानु का असाध्य। इस अन्तर का कारण यह था कि कैकेयी को श्री भरत के रूप में एक विलक्षण वैद्य मिले, जबकि प्रतापभानु को कपटमुनि के रूप में ठग-वैद्य मिला।*
शनिवार, 25 दिसंबर 2021
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
अयोध्या में आज का आधुनिक सुविधाएं
राममंदिर परिसर राममय होने के साथ-साथ आधुनिक सुविधाओं से भी लैस होगा। रामलला के दरबार में रामभक्तों को दिव्य दर्शन की अनुभूति होगी। एक साथ ...
-
राममंदिर परिसर राममय होने के साथ-साथ आधुनिक सुविधाओं से भी लैस होगा। रामलला के दरबार में रामभक्तों को दिव्य दर्शन की अनुभूति होगी। एक साथ ...
-
*****! श्री राम!***** रामाय राम भद्राय रामचंद्राय वेधसे ! रघुनाथाय नाथाय सीताया: पतये नमः! रामं रामानुजं सीतां भरतं भरतानुजम ! सुग्रीवं वाय...
-
अस प्रभु हृदयँ अछत अबिकारी। सकल जीव जग दीन दुखारी॥ नाम निरूपन नाम जतन तें। सोउ प्रगटत जिमि मोल रतन तें॥ *** समस्त विकारो...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
Thanks for giving your comments.