शनिवार, 25 दिसंबर 2021



अस्माकं तु विशिष्टा ये तान्निबोध द्विजोत्तम |

नायका मम सैन्यस्य संज्ञार्थं तान्ब्रवीमि ते || ७ ||



अस्माकम् - हमारे; तु - लेकिन; विशिष्टाः - विशेष शक्तिशाली; ये - जो; निबोध - जरा जान लीजिये, जानकारी प्राप्त कर लें, द्विज-उत्तम - हे ब्राह्मणश्रेष्ठ; नायकाः - सेनापति, कप्तान; मम - मेरी; सैन्यस्य - सेना के; संज्ञा-अर्थम् - सूचना के लिए; तान् - उन्हें; ब्रवीमि - बता रहा हूँ; ते - आपको ।


 *भावार्थ* 

किन्तु हे ब्राह्मणश्रेष्ठ! आपकी सूचना के लिए मैं अपनी सेना के उन नायकों के विषय में बताना चाहूँगा जो मेरी सेना को संचालित करने में विशेष रूप से निपुण हैं ।


 *श्लोक 1 . 8* 


भवान्भीष्मश्र्च कर्णश्र्च कृपश्र्च समितिंजयः |

अश्र्वत्थामा विकर्णश्र्च सौमदत्तिस्तथैव च || ८ ||


भवान् - आप; भीष्मः - भीष्म पितामह; च - भी; कर्णः - कर्ण; च - और; कृपः - कृपाचार्य; च - तथा; समितिञ्जयः - सदा संग्राम-विजयी; अश्र्वत्थामा - अश्र्वत्थामा; विकर्णः - विकर्ण; च - तथा; सौमदत्तिः - सोमदत्त का पुत्र; तथा - भी; एव - निश्चय ही; च - भी।

 

 *भावार्थ* 

मेरी सेना में स्वयं आप, भीष्म, कर्ण, कृपाचार्य; अश्र्वत्थामा, विकर्ण तथा सोमदत्त का पुत्र भूरिश्रवा आदि हैं जो युद्ध में सदैव विजयी रहे हैं ।



 *तात्पर्य* 

दुर्योधन उन अद्वितीय युद्धवीरों का उल्लेख करता है जो सदैव विजयी होते रहे हैं । विकर्ण दुर्योधन का भाई है, अश्र्वत्थामा द्रोणाचार्य का पुत्र है और सोमदत्ति या भूरिश्रवा बाह्लिकों के राजा का पुत्र है । कर्ण अर्जुन का आधा भाई है क्योंकि वह कुन्ती के गर्भ से राजा पाण्डु के साथ विवाहित होने के पूर्व उत्पन्न हुआ था । कृपाचार्य की जुड़वा बहन द्रोणाचार्य को ब्याही थी ।

 जीतने व कौमौ को जिंदा रखने के लिए शत्रु से भी सीखना चाहिए कि कैसे वे बढ़ रहै कैसे बिजली हो रहे।  और क्यों हम मिटकर लगातार सिमट रहे ,,,,,,सबसे बड़ा काम समाज का है ,,समाज का ताकतवर संगठित व धनवान, बलवान होना बहुत जरूरी है ,,,खूब काम करैं खूभ

 *गङ्गाधरं शशिकिशोरधरं त्रिलोकी*-

*रक्षाधरं निटिलचन्द्रधरं त्रिधारम्।*

*भस्मावधूलनधरं गिरिराजकन्या-*

*दिव्यावलोकनधरं वरदं प्रपद्ये।।*


*देवाधिदेव बाबा विश्वनाथ की जय।*


*हर हर महादेव!*

 *गङ्गाधरं शशिकिशोरधरं त्रिलोकी*-

*रक्षाधरं निटिलचन्द्रधरं त्रिधारम्।*

*भस्मावधूलनधरं गिरिराजकन्या-*

*दिव्यावलोकनधरं वरदं प्रपद्ये।।*


*देवाधिदेव बाबा विश्वनाथ की जय।*


*हर हर महादेव!*

 *जय श्री राम*

*सादगी परम सौंदर्य है क्षमा उत्कृष्ट बल है..!*

*विनम्रता सबसे अच्छा तर्क है, और अपनापन सर्वश्रेष्ठ रिश्ता है..!!*

*शुभ प्रभात.......*

*आपका दिन मंगलमय हो*



अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं

दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम्‌।


सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं

रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि॥ 


***

        अतुल बल के धाम, सुमेरु के पर्वत के समान कान्ति से युक्त शरीर वाले, दैत्य रूपी वन को ध्वंस करने के लिए अग्नि रूप, ज्ञानियों में अग्रगण्य, संपूर्ण गुणों के निधान, वानरों के स्वामी, श्रीरघुनाथ जी के प्रिय भक्त पवन के पुत्र श्रीहनुमान्‌ जी को मैं नमन करता हूँ। 





राम  भालु  कपि कटुक बटोरा।

सेतु  हेतु  श्रमु  कीन्ह न  थोरा॥

नामु  लेत  भवसिन्धु   सुखाहीं।

करहु  बिचारु सुजन मन माहीं॥

***

      श्रीरामजी को तो भालू और बंदरों की सेना को एकत्र करने में और समुद्र पर पुल बाँधने के लिए बहुत परिश्रम करना पड़ा था, लेकिन नाम लेने मात्र से संसार समुद्र ही सूख जाता है, सज्जन मनुष्यों मन में विचार तो करो।

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