शनिवार, 25 दिसंबर 2021
🌹 तुलसी पुजन दिवस की #हार्दिक बधाई और #शुभकामनायें 🍁
👉 भारतीय संस्कृत में तुलसी का स्थान पवित्र और महत्व पूर्ण है, आरोग्य प्रदायिनी , सुख- शान्ति के प्रतिक और माँ के समान माना गया है । तुलसी जी का पौधा धार्मिक , वैज्ञानिक और स्वास्थ्य के रूप से सदैव पूजनीय है l कहते है की तुलसी जी का पौधा घर पर संकट आने से पहले ही ईशारे देना शुरू कर देता है l 25 दिसम्बर को क्रिसमस ट्री सजाने से अच्छा है की #तुलसी का पौधा लगाये और उसका पुजन करे !☘ तुलसी का पौधा घर में होने से नकरात्मक शक्तियो एवं दुष्ट विचारो से रक्षा होती है उनका पुजन करने से पूर्व जन्म के पाप जल कर विनिष्ट हो जाते है और तुलसी कई ओषधियों का कार्य करती है !
☘ तुलसी पत्र भगवान विष्णु को शालिग्राम जी को और शंख पर चढाने से भगवान अति प्रसन्न होते हैं । उस चढी हुई तुलसी को भगवान विष्णु के चरणामृत के साथ ग्रहण करने से पापो का क्षय होता है। शरीर रोग मुक्त होता है।
☘ तुलसी के निकट जिस मंत्र-स्तोत्र आदि का जप-पाठ किया जाता है, वह सब अनंत गुना फल देनेवाला होता है ।
☘ प्रेत, पिशाच, ब्रह्मराक्षस, भूत, दैत्य आदि सब तुलसी के पौधे से दूर भागते है ।
ब्रह्महत्या आदि ताप तथा पाप और बुरे विचार से उत्पन्न होनेवाले रोग तुलसी के सामीप्य एवं सेवन से नष्ट हो जाते हैं ।
☘ तुलसी का पूजन, रोपण व धारण पाप को जलाता है और स्वर्ग एवं मोक्ष प्रदायक है ।
☘ श्राद्ध और यज्ञ आदि कार्यों में तुलसी का एक पत्ता भी महान पुण्य देनेवाला है ।
जो चोटी में तुलसी स्थापित करके प्राणों का परित्याग करता है, वह पापराशि से मुक्त हो जाता है ।
☘ तुलसी के नाम-उच्चारण से मनुष्य के पाप नष्ट हो जाते हैं तथा अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है ।
☘ तुलसी ग्रहण करके मनुष्य पातकों से मुक्त हो जाता है । तुलसी पत्ते से टपकता हुआ जल जो अपने सिर पर धारण करता है, उसे गंगास्नान और १० गोदान का फल प्राप्त होता है ।
☘ माँ तुलसी बीमारियों में रोगाणु प्रतिरोधक क्षमता का काम करती हैं।
☘ यह गीली ही नहीं सूखने के बाद भी मुर्दों को मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करने वाली है। तुलसी में नित्य नियम से जल अर्पण करने वाले इसके सम्पर्क में आते हैं जिससे आपको आरोग्यता की प्राप्ति होती हैं। 🌹
🌷 जय माँ तुलसी , तुलस्यै नमः, #तुलसी का पौधा लगाये 🌷
बात पुरातन बीत गई जो, क्यों हम वह गाना गायें।
नये वर्ष में काम भला कर, आओ जग पे छा जायें।।
बुरे कर्म का बुरा नतीजा, सदियों जग देता ताना।
आज खड़ा जो सम्मुख अपने, वह भी है जाने वाला।।
कुछ अच्छे कुछ बुरे पलों को, वर्ष पुरातन दिखा गया।
जाते जाते ना जाने यह, क्या कुछ हमको सिखा गया।।
आना जाना रीत यही है, पल यही अमृत विष प्याला।
आज खड़ा जो सम्मुख अपने, वह भी है जाने वाला।।
दूध में दरार पड़ गई...
ख़ून क्यों सफ़ेद हो गया?
भेद में अभेद खो गया।
बंट गये शहीद, गीत कट गए,
कलेजे में कटार दड़ गई।
दूध में दरार पड़ गई।
खेतों में बारूदी गंध,
टूट गये नानक के छंद
सतलुज सहम उठी, व्यथित सी बितस्ता है।
वसंत से बहार झड़ गई
दूध में दरार पड़ गई।
अपनी ही छाया से बैर,
गले लगने लगे हैं ग़ैर,
ख़ुदकुशी का रास्ता, तुम्हें वतन का वास्ता।
बात बनाएं, बिगड़ गई।
दूध में दरार पड़ गई।
एक बरस बीत गया...
झुलासाता जेठ मास
शरद चांदनी उदास
सिसकी भरते सावन का
अंतर्घट रीत गया
एक बरस बीत गया
सीकचों मे सिमटा जग
किंतु विकल प्राण विहग
धरती से अम्बर तक
गूंज मुक्ति गीत गया
एक बरस बीत गया
पथ निहारते नयन
गिनते दिन पल छिन
लौट कभी आएगा
मन का जो मीत गया
एक बरस बीत गया
क्या खोया, क्या पाया जग में...
क्या खोया, क्या पाया जग में
मिलते और बिछुड़ते मग में
मुझे किसी से नहीं शिकायत
यद्यपि छला गया पग-पग में
एक दृष्टि बीती पर डालें, यादों की पोटली टटोलें!
पृथ्वी लाखों वर्ष पुरानी
जीवन एक अनन्त कहानी
पर तन की अपनी सीमाएं
यद्यपि सौ शरदों की वाणी
इतना काफ़ी है अंतिम दस्तक पर, खुद दरवाज़ा खोलें!
जन्म-मरण अविरत फेरा
जीवन बंजारों का डेरा
आज यहां, कल कहां कूच है
कौन जानता किधर सवेरा
अंधियारा आकाश असीमित,प्राणों के पंखों को तौलें!
अपने ही मन से कुछ बोलें!
मैंने जन्म नहीं मांगा था...
मैंने जन्म नहीं मांगा था,
किन्तु मरण की मांग करुंगा।
जाने कितनी बार जिया हूं,
जाने कितनी बार मरा हूं।
जन्म मरण के फेरे से मैं,
इतना पहले नहीं डरा हूं।
अन्तहीन अंधियार ज्योति की,
कब तक और तलाश करूंगा।
मैंने जन्म नहीं मांगा था,
किन्तु मरण की मांग करूंगा।
बचपन, यौवन और बुढ़ापा,
कुछ दशकों में ख़त्म कहानी।
फिर-फिर जीना, फिर-फिर मरना,
यह मजबूरी या मनमानी?
पूर्व जन्म के पूर्व बसी—
दुनिया का द्वारचार करूंगा।
मैंने जन्म नहीं मांगा था,
किन्तु मरण की मांग करूंगा।
बेनक़ाब चेहरे हैं, दाग़ बड़े गहरे हैं...
गीत नहीं गाता हूं
बेनक़ाब चेहरे हैं,
दाग़ बड़े गहरे हैं
टूटता तिलिस्म आज सच से भय खाता हूँ
गीत नहीं गाता हूं
लगी कुछ ऐसी नज़र
बिखरा शीशे सा शहर
अपनों के मेले में मीत नहीं पाता हूं
गीत नहीं गाता हूं
पीठ मे छुरी सा चांद
राहू गया रेखा फांद
मुक्ति के क्षणों में बार बार बंध जाता हूं
गीत नहीं गाता हूं
दूसरी अनुभूति:
गीत नया गाता हूं
टूटे हुए तारों से फूटे बासंती स्वर
पत्थर की छाती मे उग आया नव अंकुर
झरे सब पीले पात
कोयल की कुहुक रात
प्राची में अरुणिमा की रेख देख पाता हूं
गीत नया गाता हूं
टूटे हुए सपनों की कौन सुने सिसकी
अन्तर की चीर व्यथा पलको पर ठिठकी
हार नहीं मानूंगा,
रार नहीं ठानूंगा,
काल के कपाल पे लिखता मिटाता हूं
गीत नया गाता हूं
रविवार, 26 अप्रैल 2020
कोरोना कविता
कभी किसी को जताया नहीं,
कभी किसी को कहा नहीं,आज अनायास ही लगा कुछ कहूं आपसे,
आज एक साथ को जो खो दिया मैंने,
दुख है, नहीं रोक पाए उसको,
आपको रोकने में जो लगा था वो।
सिमटी बैठी है साड़ी में वो आज अपना सब हार,
फिर खड़ी होगी कल, खाकी ने थामा है उसका हाथ,
फिर लौटेगीं यह नम आंखे, इस बलिदान की चमक के साथ,
मन विचलित है पर हौसला अडिग है,
फिर कस लिया है बेल्ट अपना,
फिर जमा ली है सर पर टोपी
लो आखिर मैंने लिख ही दी, पीड़ा विश्व के मानव की
लो लिख दी कविता मैंने, धरती पर आए दानव की
लिख दिया लेखनी से मैंने, महामारी का काला परचम
मानव की कुछ भूलों से , कैसे निकला मानव का दम।
संस्कारो को भूल गए और पाश्चात्य को अपनाया
जो काम कभी करते थे हम, उनको हमने बिसराया
कन्द, मूल ,फल भूल गए हम, लेग पीस हमें भाया
फिर कोरोना के चक्कर में, हर कोई देखो पछताया।
यदि बढ़ानी है प्रतिरक्षा ,तो नित्य प्रति व्यायाम करो
हर घंटे साबुन से ,हाथो का स्नान जरूरी है
कोरोना से लड़ना है तो ,कर्फ्यू जाम जरूरी है।
और जरूरी है अपनाना पुरातन संस्कृति को
हाथ मिलाना छोड़ आज, नमस्ते वाली रीति को
यदि बचना इससे है तो ,एक अनूठी ढाल जरूरी है
जब भी छींको, खांसो तुम ,मुंह पर रूमाल जरूरी है।
अयोध्या में आज का आधुनिक सुविधाएं
राममंदिर परिसर राममय होने के साथ-साथ आधुनिक सुविधाओं से भी लैस होगा। रामलला के दरबार में रामभक्तों को दिव्य दर्शन की अनुभूति होगी। एक साथ ...
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भाई-बहनों, आन्जनेय नन्दन श्री बजरंग बली के विषय में गोस्वामी श्री तुलसीदास जी ने हनुमान चालीसा में जो, "चारो जुग परताप तुम्हारा" ...
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कब तक चलेगा ये मतभेद कैसे अनपढ़ हैं कहने वाले जो देश को सांप्रदायिक सोच देते हैं फूट डालो और राज करो कैसे वो ये नारा भुला बैठे हैं अंग...
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अस प्रभु हृदयँ अछत अबिकारी। सकल जीव जग दीन दुखारी॥ नाम निरूपन नाम जतन तें। सोउ प्रगटत जिमि मोल रतन तें॥ *** समस्त विकारो...