*"रास्ते" पर "गति" की सीमा है.!*
*"बैंक" में "पैसों" की सीमा है.!*
*"परीक्षा" में "समय" की सीमा है.!*
*परन्तु, हमारे "सोच" की कोई सीमा नही.!* *इसलिए "सदा" "श्रेष्ठ" "सोचें" और "श्रेष्ठ" पाएं..!!*
*सानन्दं सदनं सुताश्च सुधिय:*
*कान्ता प्रियभाषिणी l*
*सन्मित्रं सधनं स्वयोषिति रति:*
*चाज्ञापरा: सेवका: ll*
*आतिथ्यं शिवपूजनं प्रतिदिनं*
*मिष्ठान्नपानं गृहे l*
*साधो: संगमुपासते हि सततं*
*धन्यो गृहस्थाश्रम: ll*
भावार्थ -- *घर में सभी आनन्द हों, पुत्र बुद्धिमान् हो, पत्नी प्रिय बोलने वाली हो, अच्छे मित्र हो, धन हो, पति - पत्नी में प्रेम हो, सेवक आज्ञाकारी हो, जहां अतिथि सत्कार हो, सदा देव - पूजन होता हो, प्रतिदिन स्वादानुसार भोजन बनता हो और सत्पुरुषों का हमेशा संग होता हो -- ऐसा गृहस्थाश्रम धन्य है l*
*यदि मनुष्य के मन में लोभ की ऐसी वृत्ति आवे कि हमें लाभ हो, तो उसे अस्वाभाविक नहीं कहा जा सकता, क्योंकि यह व्यक्ति के स्वभाव में है कि वह जब कोई कार्य करता है, तो उसमें लाभ चाहता है- नौकरी में लाभ, व्यापार में लाभ। अतएव यह नहीं कहा जा सकता कि लाभ की वृत्ति समाज से पूरी तरह मिट जाय या मिट जानी चाहिए। लोभ में में यदि एक ही इच्छा आवे तब वह समाज के लिए प्रायः घातक नहीं होती है, लेकिन जब लोभ की वृत्ति के रूप में मंथरा जीवन में आती है तब वह ऐसी प्रेरणा करती है कि व्यक्ति कभी भी एक वरदान नहीं माँगता, वह हमेशा दो वरदान माँगता है, कहता है कि मुझे लाभ हो और बगल वाले को घाटा जरूर हो। ऐसे लोभी को अपने लाभ का पूरा आनन्द तब मिलता है, जब दूसरे की हानि होती है। जब लोभ में ऐसी प्रवृत्ति आती है, तब वह रामराज्य में बाधक बन जाती है। कैकेयी और प्रतापभानु दोनों के जीवन में ऐसा विकृत लोभ दिखाई पड़ता है, पर अन्त में जाकर कैकेयी का रोग साध्य हो गया, जबकि प्रतापभानु का असाध्य। इस अन्तर का कारण यह था कि कैकेयी को श्री भरत के रूप में एक विलक्षण वैद्य मिले, जबकि प्रतापभानु को कपटमुनि के रूप में ठग-वैद्य मिला।*
राम सकुल रन रावनु मारा।
सीय सहित निज पुर पगु धारा॥
राजा रामु अवध रजधानी।
गावत गुन सुर मुनि बर बानी॥
सेवक सुमिरत नामु सप्रीती।
बिनु श्रम प्रबल मोह दलु जीती॥
फिरत सनेहँ मगन सुख अपनें।
नाम प्रसाद सोच नहिं सपनें॥
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श्रीरामचन्द्र जी ने तो कुटुम्ब सहित रावण को युद्ध में मारकर सीता सहित उन्होंने अपने नगर अयोध्या में प्रवेश किया था। राम राजा बने, अवध उनकी राजधानी बनी, देवता और मुनि सुंदर वाणी में जिनका गुणगान करते हैं, लेकिन भक्त लोग प्रेम-पूर्वक नाम के स्मरण करने मात्र से बिना परिश्रम के मोह रूपी प्रबल सेना पर विजय प्राप्त करके प्रेम-मग्न होकर सुख में विचरण करते हैं, नाम के प्रसाद से उन्हें सपने में भी कोई चिन्ता नहीं सताती है।
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🌺🌼🌻🚩जय श्री सीतारामजी की🚩🌻🌼🌺
*सम्बन्धः वारि च द्वयं हि समानं भवति।*
*न कश्चित् वर्णः न किञ्चित् रूपम्।*
*परन्तु तथापि जीवनस्य अस्तित्वस्य*
*कृते सर्वाधिकं महत्वपूर्णम्॥*
सम्बन्ध और जल
एक समान होते हैं
न कोई रंग, न कोई रूप
पर फिर भी जीवन के
अस्तित्व के लिए
सबसे महत्वपूर्ण!!
*🙏🏻💐🙏🏻आपका आज* *का दिन परम् प्रसन्नता से* *परिपूर्ण रहे,ऐसी* 💐🌺🌸🌷💐🌺🌸🌷💐🌺🌷
ब्रह्म राम तें नामु बड़ बर दायक बर दानि।
रामचरित सत कोटि महँ लिय महेस जियँ जानि॥
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"राम" नाम निर्गुण ब्रह्म और सगुण ब्रह्म दोनों से बड़ा है जो कि वरदान देने वालों को भी वर प्रदान करने वाला है। श्रीशंकर जी ने सौ करोड़ राम चरित्र में से इस "राम" नाम को सार रूप में चुनकर अपने हृदय में धारण किया हुआ है।
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एकमेव भगवद् स्मरण ही सर्वथा कल्याणकारी है।...वर्ना सांसारिक जीव का जीवन ही प्रायः विकारी है।।... विकार ब्यसन के अतिरिक्त भजन को भला कहाँ स्वीकारता है।... यदि भजन ही बनने लग जाय तब तो वह जीव मे टिक भी तो नही सकता है।।... अतः विकार मुक्त बन मेरी श्री स्वामिनी जू का मधुर चरणाश्रय गहें।... अपने मनुष्य जन्म को सफल बनाते हुये भाव व प्रेम सहित सप्रयास श्री राधे राधे ही कहें।।राधे राधे जय श्री कृष्ण हम आप सबकी यह ब्राह्मी बेला मेरे प्रभु श्री युगल सरकार के शीतल श्री चरणों की छाया में परम शांतिमय हो इन्ही शुभ कामनाओं सहित पुनः राधे राधे जय श्री कृष्ण सहित
राममंदिर परिसर राममय होने के साथ-साथ आधुनिक सुविधाओं से भी लैस होगा। रामलला के दरबार में रामभक्तों को दिव्य दर्शन की अनुभूति होगी। एक साथ ...