शनिवार, 25 दिसंबर 2021

 *_🎷जय श्री राम_ 🎷*

*हम...*

     *प्रभु श्री राम का नाम संकट में ही नहीं लेते..!*  

    *_बल्कि.._*

      *हमेंशा राम नाम लेते रहते हैं जिससे "जिंदगी" में आने वाले "संकट" आसानी से टल जाते हैं...!!*

           *🕉️🦚🕉️*



पुण्यं पापहरं सदा शिवकरं विज्ञानभक्तिप्रदं।

मायामोहमलापहं सुविमलं प्रेमाम्बुपूरं शुभम्‌।

श्रीमद्रामचरित्रमानसमिदं भक्त्यावगाहन्ति ये।

ते संसारपतंगघोरकिरणैर्दह्यन्ति नो मानवाः॥


भावार्थ:-यह श्री रामचरित मानस पुण्य रूप, पापों का हरण करने वाला, सदा कल्याणकारी, विज्ञान और भक्ति को देने वाला, माया मोह और मल का नाश करने वाला, परम निर्मल प्रेम रूपी जल से परिपूर्ण तथा मंगलमय है। जो मनुष्य भक्तिपूर्वक इस मानसरोवर में गोता लगाते हैं, वे संसाररूपी सूर्य की अति प्रचण्ड किरणों से नहीं जलते।

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🌺🌼🌻🚩जय श्री सीतारामजी की🚩🌻🌼🌺

 *मनुष्य के कर्मों का साक्षी कौन है ?*


मृत्युलोक में प्राणी अकेला ही पैदा होता है, अकेले ही मरता है। प्राणी का धन-वैभव घर में ही छूट जाता है। मित्र और स्वजन श्मशान में छूट जाते हैं। शरीर को अग्नि ले लेती है। पाप-पुण्य ही उस जीव के साथ जाते हैं। अकेले ही वह पाप-पुण्य का भोग करता है परन्तु धर्म ही उसका अनुसरण करता है।


‘शरीर और गुण (पुण्यकर्म) इन दोनों में बहुत अंतर है, क्योंकि शरीर तो थोड़े ही दिनों तक रहता है किन्तु गुण प्रलयकाल तक बने रहते हैं। जिसके गुण और धर्म जीवित हैं, वह वास्तव में जी रहा है।’


*पाप और पुण्य*


वेदों में जिन कर्मों का विधान है, वे धर्म (पुण्य) हैं और उनके विपरीत कर्म अधर्म (पाप) कहलाते हैं। मनुष्य एक दिन या एक क्षण में ऐसे पुण्य या पाप कर सकता है कि उसका भोग सहस्त्रों वर्षों में भी पूर्ण न हो।


*मनुष्य के कर्म के चौदह साक्षी*


सूर्य, अग्नि, आकाश, वायु, इन्द्रियां, चन्द्रमा, संध्या, रात, दिन, दिशाएं, जल, पृथ्वी, काल और धर्म–ये सब मनुष्य के कर्मों के साक्षी हैं।


सूर्य रात्रि में नहीं रहता और चन्द्रमा दिन में नहीं रहता, जलती हुई अग्नि भी हरसमय नहीं रहती; किन्तु रात-दिन और संध्या में से कोई एक तो हर समय रहता ही है। दिशाएं, आकाश, वायु, पृथ्वी, जल सदैव रहते हैं, मनुष्य इन्हें छोड़कर कहीं भाग नहीं सकता, इनसे छुप नहीं सकता। मनुष्य की इन्द्रियां, काल और धर्म भी सदैव उसके साथ रहते हैं। कोई भी कर्म किसी-न किसी इन्द्रिय द्वारा किसी-न-किसी समय (काल) होगा ही। उस कर्म का प्रभाव मनुष्य के ग्रह-नक्षत्रों व पंचमहाभूतों पर पड़ता है। जब मनुष्य कोई गलत कार्य करता है तो धर्मदेव उस गलत कर्म की सूचना देते हैं और उसका दण्ड मनुष्य को अवश्य मिलता है।


*कर्म से ही देह मिलता है*


पृथ्वी पर जो मनुष्य-देह है उसमें एक सीमा तक ही सुख या दु:ख भोगने की क्षमता है। जो पुण्य या पाप पृथ्वी पर किसी मनुष्य-देह के द्वारा भोगने संभव नही, उनका फल जीव स्वर्ग या नरक में भोगता है। पाप या पुण्य जब इतने रह जाते हैं कि उनका भोग पृथ्वी पर संभव हो, तब वह जीव पृथ्वी पर किसी देह में जन्म लेता है।


कर्मों के अवशेष भाग को भोगने के लिए मनुष्य मृत्युलोक में स्थावर-जंगम अर्थात् वृक्ष, गुल्म (झाड़ी), लता, बेल, पर्वत और तृण–आदि योनि प्राप्त करता है। ये सब दु:खों के भोग की योनियां हैं। वृक्षयोनि में दीर्घकाल तक सर्दी-गर्मी सहना, काटे जाने व अग्नि में जलाये जाने सम्बधी दु:ख भोगना पड़ता है। यदि जीव कीटयोनि प्राप्त करता है तो अपने से बलवान प्राणियों द्वारा दी गयी पीड़ा सहता है, शीत-वायु और भूख के क्लेश सहते हुए मल-मूत्र में विचरण करना आदि दारुण दु:ख उठाता है। इसी तरह से पशुयोनि में आने पर अपने से बलवान पशु द्वारा दी गयी पीड़ा का कष्ट पाता रहता है। पक्षी की योनि में आने पर कभी वायु पीकर रहना तो कभी अपवित्र वस्तुओं को खाने का कष्ट उठाना पड़ता है। यदि भार ढोने वाले पशुओं की योनि में जीव आता है तो रस्सी से बांधे जाने, डण्डों से पीटे जाने व हल जोतने का दारुण दु:ख जीव को सहना पड़ता है।


*विभिन्न पापयोनियां*


इस संसार-चक्र में मनुष्य घड़ी के पेण्डुलम की भांति विभिन्न पापयोनियों में जन्म लेता और मरता है–


–माता-पिता को कष्ट पहुंचाने वाले को कछुवे की योनि में जाना पड़ता है।


–मित्र का अपमान करने वाला गधे की योनि में जन्म लेता है।


–छल-कपट कर जीवनयापन करने वाला बंदर की योनि में जाता है।


–अपने पास रखी किसी की धरोहर को हड़पने वाला मनुष्य कीड़े की योनि में जन्म लेता है।


–विश्वासघात करने से मनुष्य को मछली की योनि मिलती है।


–विवाह, यज्ञ आदि शुभ कार्यों में विघ्न डालने वाले को कृमियोनि मिलती है।


–देवता, पितर व ब्राह्मणों को भोजन न कराकर स्वयं खा लेता है वह काकयोनि (कौए) में जाता है।


*दुर्लभ है मनुष्ययोनि*


इस प्रकार बहुत-सी योनियों में भ्रमण करके जीव किसी महान पुण्य के कारण मनुष्ययोनि प्राप्त करता है। मनुष्ययोनि प्राप्त करके भी यदि दरिद्र, रोगी, काना या अपाहिज जीवन मिले तो बहुत अपमान व कष्ट भोगना पड़ता है।


इसलिए दुर्लभ मनुष्य जन्म पाकर संसार-बंधन से मुक्त होने के लिए प्राणी को भगवान कृष्ण की सेवा-आराधना करनी चाहिए क्योंकि वे ही कर्मफल के दाता व संसार-बंधन से छुड़ाने वाले मोक्षदाता हैं। भगवान विष्णु के जो-जो स्वरूप हैं, उनकी भक्ति करने से मनुष्य संसार-सागर आसानी से पार कर परमधाम को प्राप्त करता है।


भगवान विष्णु ने बताया संसार-सागर से पार होने का उपाय


भगवान विष्णु ने संसार-सागर से पार होने का उपाय भगवान रुद्र को बताते हुए कहा कि ‘विष्णुसहस्त्रनाम’ स्तोत्र से मेरी नित्य स्तुति करने से मनुष्य भवसागर को सहज ही पार कर लेता है।


‘जिनका मन भगवान विष्णु की भक्ति में अनुरक्त है, उनका अहोभाग्य है, अहोभाग्य है; क्योंकि योगियों के लिए भी दुर्लभ मुक्ति उन भक्तों के हाथ में ही रहती है।’ (नारदपुराण)


*भक्तों की गति*


भक्त अपने आराध्य के लोक में जाते हैं। भगवान के लोक में कुछ भी बनकर रहना सालोक्य-मुक्ति है। भगवान के समान ऐश्वर्य प्राप्त करना सार्ष्टि-मुक्ति है। भगवान के समान रूप पाकर वहां रहना सारुप्य-मुक्ति है। भगवान के आभूषणादि बनकर रहना सामीप्य-मुक्ति कहलाती है। भगवान के श्रीविग्रह में मिल जाना सायुज्य-मुक्ति है।


जिस जीव को भगवान का धाम प्राप्त हो जाता है, वह भगवान की इच्छा से उनके साथ या अलग से संसार में दिव्य जन्म ले सकता है। वह कर्मबन्धन में नहीं बंधा होता है। संसार में भगवत्कार्य समाप्त करके वह पुन: भगवद्धाम चला जाता है।


*मुक्त पुरुष*


मनुष्य बिना कर्म किए रह नहीं सकता। कर्म करेगा तो पाप-पुण्य दोनों होंगे। लेकिन जो मनुष्य सबमें भगवत्दृष्टि रखकर भगवान की सेवा के लिए, उनकी आज्ञा का पालन करने के लिए और भगवान की प्रसन्नता के लिए कर्म करता है तो उसके कर्म भी अकर्म बन जाते हैं और कर्म-बंधन में नहीं बांधते हैं। वह संसार में रहते हुए भी नित्यमुक्त है।


तत्त्वज्ञानी पुरुष संसार के आवागमन से मुक्त हो जाते हैं। उनके प्राण निकलकर कहीं जाते नहीं बल्कि परमात्मा में लीन हो जाते हैं। सती स्त्रियां, युद्ध में मारे गए वीर और उत्तरायण के शुक्ल-मार्ग से जाने वाले योगी मुक्त हो जाते हैं।


*गीता में शुक्ल तथा कृष्ण मार्ग कहकर दो गतियों का वर्णन है*


जिनमें वासना शेष है, वे धुएं, रात्रि, कृष्णपक्ष, दक्षिणायन के देवताओं द्वारा ले जाए जाते हैं। ऊर्ध्वलोक में अपने पुण्य भोगकर वे फिर पृथ्वी पर जन्म लेते हैं।

जिनमें कोई वासना शेष नहीं है, वे अग्नि, दिन, शुक्लपक्ष, उत्तरायण के देवताओं द्वारा ले जाये जाते हैं। वे फिर पृथ्वी पर जन्म लेकर नहीं लौटते हैं।


*पितृलोक*


यह एक प्रकार का प्रतीक्षालोक है। एक जीव को पृथ्वी पर जिस माता-पिता से जन्म लेना है, जिस भाई-बहिन व पत्नी को पाना है, जिन लोगों के द्वारा उसे सुख-दु:ख मिलना है; वे सब लोग अलग-अलग कर्म करके स्वर्ग या नरक में हैं। जब तक वे सब भी इस जीव के अनुकूल योनि में जन्म लेने की स्थिति में न आ जाएं, इस जीव को प्रतीक्षा करनी पड़ती है। पितृलोक इसलिए एक प्रकार का प्रतीक्षालोक है।


*प्रेतलोक*


यह नियम है कि मनुष्य की अंतिम इच्छा या भावना के अनुसार ही उसे गति प्राप्त होती है। जब मनुष्य किसी प्रबल राग-द्वेष, लोभ या मोह के आकर्षण में फंसकर देह त्यागता है तो वह उस राग-द्वेष के बंधन में बंधा आस-पास ही भटकता रहता है। वह मृत पुरुष वायवीय देह पाकर बड़ी यातना भरी योनि प्राप्त करता है। इसीलिए कहा जाता है– *‘अंत मति सो गति।’*


🙏🌷जय श्री राम 🌷🙏

 रिश्तों में बढती हुई नफरत का 

कारण ये भी है, कि आजकल 

लोग गैरो को अपना बनाने में 

और अपनो को नजर अंदाज 

करने में लगे है,,

 

 नम: श्रीविश्वनाथाय

     देववन्द्यपदाय    ते ।

काशीशेशावतारो में

     देवदेव  ह्युपादिश ।।

मायाधीशं महात्मानं

       सर्वकारणकारणम्।

वन्दे तं माधवं देवं

     य: काशीं चाधितिष्ठति।।


हे देवदेव! आपने काशीमें‌ शासन करने हेतु मंगलमूर्ति शिवके रूपमें अवतार लिया है।आप विश्वके नाथ हैं, देवता आपके चरणोंकी वन्दना करते हैं,आप मुझको उपदेश दें, आपको नमस्कार है।

          जो मायाके अधीश्वर हैं, महान् आत्मा हैं,सभी कारणों के कारण हैं और जो काशीको सदा अपना अधिष्ठान बनाते हुए हैं,ऐसे उन भगवान् माधवको मैं प्रणाम करता‌ हूं।'

सुप्रभात, देवाधिदेव महादेव श्री काशी विश्वनाथ जी की कृपा दृष्टि सदैव आप एवं आपके परिवार पर बनी रहे ।  आज एक ऐतिहासिक दिन है ,जब श्री काशी विश्वनाथ धाम एक नए रूप में हम लोगों के सामने अवतरित होगा । धाम की दिव्यता को बढ़ाने हेतु आदरणीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी को कोटि कोटि धन्यवाद जिन्होंने काशी विश्वनाथ की गरिमा के अनुसार उनके धाम को प्रतिस्थापित किया । धाम की आभा एवं उसकी दिव्यता देखते ही बनती हैं । इस ऐतिहासिक एवं अविस्मरणीय दिन की एक बार पुनः आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं । बाबा विश्वनाथ की असीम कृपा सदा सर्वदा आप लोगों पर बनी रहे । सदैव मानव जाति का कल्याण होता रहे । हमारा भारत नित् निरंतर आध्यात्मिक सांस्कृतिक एवं भौतिक प्रगति करता रहे । बाबा विश्वनाथ के श्री चरणों में बारंबार प्रणाम । 🙏🙏

 *जय श्री राम*

*ढल जाती है हर चीज़ अपने एक तय वक्त पर*

*लेकिन प्रेम, अपनत्व और एक दोस्ती है जो कभी बूढ़ी नहीं होता है।



निश्चित्वा यः प्रक्रमते 

        नान्तर्वसति कर्मणः,

 अवन्ध्यकालो वश्यात्मा 

         स वै पण्डित उच्यते।।


भावार्थः- *जिनके प्रयास एक दृढ़ प्रतिबद्धता से शुरु होते हैं, जो कार्य पूर्ण होने तक ज्यादा विश्राम नहीं करते हैं, जो समय नष्ट नहीं करते हैं और जो अपने विचारों पर नियंत्रण रखते हैं, वह बुद्धिमान है।।*


🌹🙏 *_गिरीराज धरण की जय हो_*🙏🌹

अयोध्या में आज का आधुनिक सुविधाएं

  राममंदिर परिसर राममय होने के साथ-साथ आधुनिक सुविधाओं से भी लैस होगा। रामलला के दरबार में रामभक्तों को दिव्य दर्शन की अनुभूति होगी। एक साथ ...